Friday, August 30, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कितना कुछ कह जाते हैं पत्ते

"निरंतर" की कलम से.....: कितना कुछ कह जाते हैं पत्ते: कोंपल से पत्ता बनने तक पत्ता बनने से झड़ने तक मूक रहते हैं सहते हैं, आंधी तूफ़ान गर्मी सर्दी से लड़ते हैं बसंत में झूम...

"निरंतर" की कलम से.....: अब तक तो

"निरंतर" की कलम से.....: अब तक तो: अब तक तो इर्ष्या द्वेष के गाँव में जात पांत के कसबे धर्म के नगर में मन के राक्षसी राष्ट्र में जी लिए अब मन की खिड़की ह्रदय...

"निरंतर" की कलम से.....: बहुत अच्छा लगता है दूसरों की बात करना

"निरंतर" की कलम से.....: बहुत अच्छा लगता है दूसरों की बात करना: बहुत अच्छा लगता है   दूसरों की बात करना लोगों का मज़ाक उड़ाना   उन पर ऊंगली उठाना   लोगों की जुबां से खुद   ज़ख्म खाओगे जिस दिन   ...

"निरंतर" की कलम से.....: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका

"निरंतर" की कलम से.....: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका: जब अपना ही बन कर नहीं रह सका किसी और का बन कर कैसे रहूँ पथ से भटक गया हूँ भ्रम जाल में फंस चुका हूँ मरीचिका के पीछे दौड़ रहा हूँ...

"निरंतर" की कलम से.....: बुद्धि के विकास ने

"निरंतर" की कलम से.....: बुद्धि के विकास ने: गेंदे का फूल गुलाब के फूल से इर्ष्या नहीं करता कोयल की कूंक से गोरिय्या द्वेष नहीं रखती कुए का पानी तालाब के पानी में मिला...

"निरंतर" की कलम से.....: भ्रम जाल में फंसा दानव बन रहा इंसान

"निरंतर" की कलम से.....: भ्रम जाल में फंसा दानव बन रहा इंसान: रोता है मन तड़पता है मन जब देखता है रोता हुआ बचपन घबराई हुई जवानी सहमा हुआ बुढापा दरकती निष्ठाएं खोखले रिश्ते स्वार्थ का व...

"निरंतर" की कलम से.....: हार कर भी जीतना चाहता हूँ

"निरंतर" की कलम से.....: हार कर भी जीतना चाहता हूँ: येन केन प्रकारेण जीतना नहीं चाहता हूँ होड़ के चक्रव्यूह में फंसना नहीं चाहता हूँ कर्म पथ पर नदी सा अविरल  बहना चाहता हूँ स...

"निरंतर" की कलम से.....: कलम हाथ में लेते ही

"निरंतर" की कलम से.....: कलम हाथ में लेते ही: कलम हाथ में लेते ही मेरा चंचल मन ना जाने कहाँ से आश्वासन पाता है शरीर की सारी थकान मिट जाती है, ऊंगलियों में ऊर्जा का संचा...

"निरंतर" की कलम से.....: तटस्थ

"निरंतर" की कलम से.....: तटस्थ: बड़ी आसानी से तुमने कह दिया तुम किसी के झगडे में नहीं पड़ते हो सदा तटस्थ रहते हो हर झगडे में एक सही दूसरा गलत होता है जानते हुए ...

Sunday, August 25, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: अगर सोच सार्थक हो

"निरंतर" की कलम से.....: अगर सोच सार्थक हो: बचपन से सुनता रहा हूँ अब भी निरंतर सुनता हूँ आगे भी सुनता रहूँगा जीवन रोने के लिए नहीं हँसने के लिए होता है बात असत्य नहीं है पर य...

"निरंतर" की कलम से.....: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं

"निरंतर" की कलम से.....: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं: लोग हद पार करने की बात तो करते हैं मगर हद तो जब पार होती है जब खुद के स्वार्थ के लिए लोग  हद पार करते हैं पर जब बात दूसरों की...

"निरंतर" की कलम से.....: हर ओर मेला ही मेला

"निरंतर" की कलम से.....: हर ओर मेला ही मेला: हर ओर मेला ही मेला ह्रदय में,मन में, मस्तिष्क में रंग बिरंगा मदमाता लुभाता मेला इच्छाओं के नित नए सपने दिखाता मेला सागर ...

"निरंतर" की कलम से.....: केवल समय को पता है

"निरंतर" की कलम से.....: केवल समय को पता है: केवल  समय को पता है कब तक ? सम्बन्ध निभेगा कब अविश्वास की बलि चढ़ेगा कब समापन होगा ? कौन पहल करेगा ? किसका  सब्र ख़त्म...

Tuesday, August 20, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द भी वही वाक्य भी वही

"निरंतर" की कलम से.....: शब्द भी वही वाक्य भी वही: तुमने कहा गुलाब के  फूल ने  मुझे  लुभाया मैंने भी यही कहा गुलाब के  फूल ने  मुझे  लुभाया तुम्हें उसकी सुन्दरता ने  मुझे सुगं...

"निरंतर" की कलम से.....: महकते फूल

"निरंतर" की कलम से.....: महकते फूल: चांदी सा चमकते चमेली के फूल को देखा काँटों की बीच सुर्ख लाल गुलाब को झांकते देखा हर सिंगार के नन्हे फूल को सुगंध फैलाते देखा...

"निरंतर" की कलम से.....: आशाएं कहने लगी एक दिन मुझसे

"निरंतर" की कलम से.....: आशाएं कहने लगी एक दिन मुझसे: आशाएं कहने लगी  एक दिन मुझसे निरंतर बहुत थक गयी हैं हर दिन नयी आशाएं संजोते हो एक पूरी नहीं होती दूसरी मन में लाते हो कु...

"निरंतर" की कलम से.....: माँ आज मुझे अपने सीने से लगा लो

"निरंतर" की कलम से.....: माँ आज मुझे अपने सीने से लगा लो: माँ आज मुझे  अपने सीने से लगा  लो  मेरा बचपन मुझे वापस लौटा दो मैंने समझा था बहुत बड़ा हो गया हूँ पढ़ लिख कर बड़ा इंसान बन गया हू...

"निरंतर" की कलम से.....: उपलब्धि

"निरंतर" की कलम से.....: उपलब्धि: मित्र ने  रत्न जडित कीमती घड़ी  क्या खरीद ली सुबह से शाम तक घड़ी  का गुणगान उसकी  दिनचर्या  बन गयी जीवन की बड़ी उपलब्धि हो गयी ...

Friday, August 16, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: ईमान का कटघरा

"निरंतर" की कलम से.....: ईमान का कटघरा: (जीवन दर्शन) ) पडोसी के घर पर लगे अमरुद के पेड़ से सड़क की ओर लटकते अमरुद को देखा तो मन लालच से भर गया स्वयं पर काबू ना रख पाया इ...

"निरंतर" की कलम से.....: स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो

"निरंतर" की कलम से.....: स्थिति परिस्थिति कैसी भी हो: ( जीवन अमृत ) असफलताओं से घबराकर डरने लगा कर्म से जी चुराने लगा आत्मविश्वास खो बैठा अपने आप में सिमट कर रह गया न...

"निरंतर" की कलम से.....: समझदारी

"निरंतर" की कलम से.....: समझदारी: (जीवन अमृत) तुम्हारी बात समझ नहीं पाया तो कोई अपराध नहीं किया मेरी समझदारी पर प्रश्न मत खडा करो मेरी हँसी मत उडाओ अपने संकुचित सोच ...

Thursday, August 15, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: सम्मान की दृष्टि

"निरंतर" की कलम से.....: सम्मान की दृष्टि: साधारण कुडता पयजामा पहन कर समारोह में चला गया देखते ही मित्र ने टोक दिया निरंतर कुछ तो अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल करो इतनी साधारण व...

Wednesday, August 14, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मन मस्तिष्क में सामंजस्य नहीं हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: मन मस्तिष्क में सामंजस्य नहीं हो तो: कल रात आँखें भारी होने लगी नींद बुलाने लगी बिस्तर पर लेट कर नींद की प्रतीक्षा करने लगा अचानक मन कहने लगा नींद बहुत सताती ह...

Tuesday, August 13, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: मैं नहीं चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: मैं नहीं चाहता: मैं नहीं चाहता  बिमारी में व्यथा में व्याकुलता में निराशा में कोई मेरा हाल पूछे मेरी परेशानियों का कारण पूछे मैं जानता ह...

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही

"निरंतर" की कलम से.....: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही: ज़िन्दगी अब तक तुम प्रश्न करती रही मुझसे अब कुछ प्रश्न मैं भी कर लूं तुमसे जब जिंदगी भर चैन नहीं मिलता फिर चैन का भ्रम क्यों द...

"निरंतर" की कलम से.....: दुखी मन बोला सुखी मन से

"निरंतर" की कलम से.....: दुखी मन बोला सुखी मन से: दुखी मन बोला सुखी मन से जब तुम भी मन मैं भी मन फिर मैं दुखी तुम खुश कैसे सुखी मन से अधिक पाने की इच्छा में तुम होड़ में जीते ह...

"निरंतर" की कलम से.....: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं

"निरंतर" की कलम से.....: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं: किस,किस को किस,किस बात का दोष दूं सपने तो मैंने देखे थे अपेक्षाएं भी मैंने रखी थीं आशाएं भी मेरी थी इच्छाएं मैंने संजोई थी करने वा...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्या वही करता रहूँ?: क्या वही करता रहूँ जो करता रहा हूँ क्या वैसे ही सोचता रहूँ जैसे सोचता रहा हूँ क्या वैसे ही जीता रहूँ जैसे जीता रहा हूँ प्रश्...

"निरंतर" की कलम से.....: मन कहाँ मानता है

"निरंतर" की कलम से.....: मन कहाँ मानता है: मन कहाँ मानता है कहना किसी का जो मेरी मानेगा कितना भी समझाओ समझता नहीं है लाख सर फुटव्वल करो मान मनुहार करो जिद पर अड़ जाए त...

"निरंतर" की कलम से.....: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे

"निरंतर" की कलम से.....: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे: दूसरा श्रेष्ठ कैसे मुझसे सोच सोच कर दुखी होता रहा कैसे श्रेष्ठता जताऊँ उससे उधेड़बुन में लगा रहा कर्म पथ से भटक  कर इर्ष्या के आँग...

Sunday, August 11, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: कभी सोचा है ?

"निरंतर" की कलम से.....: कभी सोचा है ?: कभी सोचा है कैसे बचाती है जान नन्ही सी चिड़िया आंधी तूफ़ान से कभी ख्याल आया कहाँ सोता है गली का कुत्ता सर्दी की रात में ...

Saturday, August 10, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: चाहो खुद को उत्तम मानो चाहो तो अति उत्तम मानो

"निरंतर" की कलम से.....: चाहो खुद को उत्तम मानो चाहो तो अति उत्तम मानो: चाहो खुद को  उत्तम मानो  चाहो तो  अति उत्तम मानो  कोई रोक नहीं है कोई टोक नहीं चाहो तो खुद को  सर्वोत्तम मानो अहम् से इतना...

"निरंतर" की कलम से.....: क्या खोया क्या पाया

"निरंतर" की कलम से.....: क्या खोया क्या पाया: क्या खोया क्या पाया जिंदगी में अब तो जान लो नहीं लगाया हो हिसाब तो अब लगा लो कितनो का दिल दुखाया कितनों को दुश्मन बनाया अब तो दिल...

"निरंतर" की कलम से.....: चाँद अब परेशान होने लगा है

"निरंतर" की कलम से.....: चाँद अब परेशान होने लगा है: कभी तीज कभी ईद कभी पूर्णिमा कभी करवा चौथ पर पूजे जाने से चाँद अब परेशान होने लगा है मैंने कारण पूछा तो मुंह बिचका कर कहन...

"निरंतर" की कलम से.....: उन पर कोई रोक नहीं

"निरंतर" की कलम से.....: उन पर कोई रोक नहीं: वो मुझे चाहे ना चाहे उन पर कोई रोक नहीं मैं उनको चाहता रहूँगा वो ह्रदय को काबू  में कर सकते हैं खुद की भावनाओं से खुद ही खेल...

Thursday, August 8, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: किसका मन रखूँ

"निरंतर" की कलम से.....: किसका मन रखूँ: किसका मन रखूँ किसका ना रखूँ किसे  खुश करूँ किसे नाराज़ करूँ मन में दुविधा को जन्म  देता  प्रश्न निरंतर मुंह खोले सामने ख...

"निरंतर" की कलम से.....: अर्थ का अनर्थ

"निरंतर" की कलम से.....: अर्थ का अनर्थ: आज अर्थ का अनर्थ हो गया मित्र से वार्तालाप वाकयुद्ध में बदल गया असहनशीलता   ने जिव्ह्वा से नियंत्रण समाप्त कर दिया मुंह से...

Wednesday, August 7, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता: ना पर्वत श्रंखलाएं एक ऊंचाई की होती ना सारी नदियाँ एक गति से बहती ना पक्षी इकसार होते ना पेड़ पौधे एक आकार के होते फिर क्यों मनुष्...

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता

"निरंतर" की कलम से.....: सोच में एकरूपता चाहता: ना पर्वत श्रंखलाएं एक ऊंचाई की होती ना सारी नदियाँ एक गति से बहती ना पक्षी इकसार होते ना पेड़ पौधे एक आकार के होते फिर क्यों मनुष्...

Monday, August 5, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है: मुल्क का हाल इतना बेहाल हो गया है अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है इन्साफ क्या ख़ाक मिलेगा हर लम्हा डर कर जीना पडेगा खून का...

"निरंतर" की कलम से.....: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो

"निरंतर" की कलम से.....: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो: अगर छोटी छोटी बात में रूठना हो तो मुझसे मित्रता मत करना एक क्षण के लिए भी दुःख का कारण मत बनना कहीं ऐसा ना हो मित्रता के नाम से ह...

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है

"निरंतर" की कलम से.....: अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है: मुल्क का हाल इतना बेहाल हो गया है अब कातिल ही मुंसिफ हो गया है इन्साफ क्या ख़ाक मिलेगा हर लम्हा डर कर जीना पडेगा खून का...

"निरंतर" की कलम से.....: कहने की ललक में

"निरंतर" की कलम से.....: कहने की ललक में: तुमने जिव्हा पर नियंत्रण खो दिया केवल कहने की ललक में किसी व्यक्ति विशेष पर स्थिति परिस्थिति पर बिना सोचे समझे कुछ कह दिया यह तुम...

Saturday, August 3, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: आवाज़ थर्राने लगी,कंठ भर्राने लगे

"निरंतर" की कलम से.....: आवाज़ थर्राने लगी,कंठ भर्राने लगे: आवाज़ थर्राने लगी कंठ भर्राने लगे इंसानियत को झुलसते देख इंसानों के ह्रदय रोने लगे लाचार हो कर शर्म से मुंह छिपाने लगे यही ह...

"निरंतर" की कलम से.....: व्यथित क्यों होते हो

"निरंतर" की कलम से.....: व्यथित क्यों होते हो: इच्छाएं पूरी नहीं हुई  तो  व्यथित क्यों होते हो क्यों निराशा के भंवर में फंसते हो इच्छाएं तो राम कृष्ण की भी पूरी नहीं हुई ...

Thursday, August 1, 2013

"निरंतर" की कलम से.....: पलाश का पेड़

"निरंतर" की कलम से.....: पलाश का पेड़: केसरिया रंग के फूलों से लदा पलाश का पेड़ जंगल में आग का आभास  देता हरे पेड़ों के बीच जंगल का राजा नज़र आता  ना उसके फूलों को मा...

"निरंतर" की कलम से.....: आईने कितने भी बदलूँ

"निरंतर" की कलम से.....: आईने कितने भी बदलूँ: आईने कितने भी बदलूँ अक्स उसका ही दिखता चहरे कितने भी देखूं हर चेहरे में अक्स उसका ही दिखता ख्व्वाब भी देखूं तो अक्स उसका ही ...

"निरंतर" की कलम से.....: परेशां नहीं हूँ लोगों से

"निरंतर" की कलम से.....: परेशां नहीं हूँ लोगों से: परेशां नहीं हूँ लोगों से परेशां हूँ लोगों के हाल से परेशानी नहीं हूँ बीमार को देख कर परेशां हूँ बीमारी से कौन करेगा इलाज़ नफरत की ...

"निरंतर" की कलम से.....: उनके दिल जलते रहे

"निरंतर" की कलम से.....: उनके दिल जलते रहे: हम अकेले थे वो बहुत थे नफरत से भरे थे अहम् में चूर थे हमारे सुख उनसे देखे ना गए वो पत्थर मारते गए चोट खा कर भी हम मुस्काराते रहे  ...