मन निश्छल होने के
पश्चात भी ,
एक छोटा सा सत्य ,
शक पैदा कर सकता है ,
बड़ी विपदा ला सकता है ,
ऐसी अवस्था में चुप रहना ही
श्रेयस्कर होता,
जीवन में दूसरों की खुशी के लिए
बहुत कुछ सहना पड़ता,
जूता पहनने वाला ही जानता है,
जूता कहाँ काटता है,
कदम कदम पर
विश्वास,की कसौटी पर
परखा जाना ,
फिर बेगुनाही के सबूत देने से
अच्छा है, छोटा झूठ बोलना ,
बशर्ते जो भी आप कर रहे हैं
वो उचित और मर्यादाओं की
सीमा में हो .
यह जीवन की त्रासदी है ,
कई लोग इस बात को
जीवन भर समझ नहीं पाते
और कई लोग इस कारण से
मन और ह्रदय में पीड़ा
सहते रहते
13-02-2012
No comments:
Post a Comment