Thursday, November 24, 2011

सीखना


कहते हैं
माँ के पेट से सीख कर
कोई नहीं आता
मनुष्य जो भी सीखता है ,
अनुभव से या दूसरों को देख कर
या फिर दूसरों द्वारा सिखाया जाता है
सीखना जीवन भर चलता रहता है ,
 एक अनपढ़ मजदूर  भी
हमें कुछ ना कुछ सिखा सकता है,
सीखने के लिए मस्तिष्क और ह्रदय के
कपाट खुले होने चाहिए
मेरा मानना है ,और बातों के अलावा
जीवन नियमित रूप से
सीखने की प्रक्रिया भी है
मनुष्य किसी से भी
सीख सकता है
सीखने के लिए उम्र ,धन,पद का
महत्त्व नहीं होता .
अहम् और अहंकार सीखने में
बाधक होता है
24-11-2011-37
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर

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